गीतिका
जाने को है शरद, माघ का सावन हुआ बसंती.
रुत बसंत की भोर, आज मनभावन हुआ बसंती.
बौर खिले पेड़ों पर, लहराई गेहूँ की बाली,
मनुहारों, पींगों की रुत मनमादन हुआ बसंती.
आहट होने लगी फाग की, पवन चली मधुमासी,
चढ़ने लगा रंग तन-मन पर दामन हुआ बसंती.
डाल डाल पर फूल खिले, ली अँगड़ाई कलियों ने,
नंदन कानन, अभ्यारण्य‘, वृन्दावन हुआ बसंती.
‘आकुल’ आया बसंत दूत ले कर संदेशा घर-घर,
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माघ का सावन - मावठ, मनमादन- कामदेव रूपी मन
बसन्त दूत- कोयल
बासंती रंग और महक से दिल कुश हो गया।बधाई आकुल जी।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय. आप का नियमित ब्लॉग पर भ्रमण विश्वास जगाता है. धन्यवाद.
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