28 अगस्त 2024

घिरा है आग की लपटों से भारत

 गीतिका

छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- होगा
समांत-अना
 घिरा है आग की लपटों से भारत साधना होगा ।
लगी भीतर भी' है इक आग यह तो मानना होगा।
 
अभी तो लुट रही हैं नारियाँ इक दिन लुटोगे तुम,
सम्‍हल जाओ रहो इकजुट कि अरि को हाँकना होगा।
 
न बंदरबाँट की हो अब सियासत वोट की खातिर,
न आरक्षण न गणना जाति खूँटी टाँगना होगा।
 
न हो अब शंख की ध्‍वनि कर्णभेदी बाँसुरी के स्‍वर,
न ऐसा हो कि फिर ध्‍वज का सुदर्शन थामना होगा।

छॅटें अब युद्ध के बादल प्रकृति से हो यही विनती,
बजे बस चैन की बंसी ये’ संकट टालना होगा। 


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