छंद- चवपैया
दिन आया अद्भुत, खुश है तिरहुत, संग अयोध्यावासी.
ज्यों पौ फटते ही, सूरज ने भी, दीप्ति बिखेरी स्वर्णिम,
{भावार्थ- अद्भुत दिन आया है, तिरहुत (जनक की नगरी मिथिला) और आयोध्यावासी खुश हैं. देश आज राममय हो गया है, सभी दिशाओं से लोग अयोध्या पहुँच रहे हैं. सूरज ने भी जैसे पौ फटते ही अयोध्या पर स्वर्णिम आभा बिखेरी है. सप्तपुरियाँ खुश हैं, सभी के मन में (घट-घट) रामलला जो बसे हैं.}
विधान- 30 मात्रा, 10,8,12 पर यति. आरंभ द्विकल अंत 2 गुरु से.
दिन आया अद्भुत, खुश है तिरहुत, संग अयोध्यावासी.
है देश राममय, चले अयोध्या, चहूँ दिशा के वासी.
जय श्री राम |
हैं सप्तपुरी खुश, रामलला जो, हैं घट-घट के वासी.
{भावार्थ- अद्भुत दिन आया है, तिरहुत (जनक की नगरी मिथिला) और आयोध्यावासी खुश हैं. देश आज राममय हो गया है, सभी दिशाओं से लोग अयोध्या पहुँच रहे हैं. सूरज ने भी जैसे पौ फटते ही अयोध्या पर स्वर्णिम आभा बिखेरी है. सप्तपुरियाँ खुश हैं, सभी के मन में (घट-घट) रामलला जो बसे हैं.}
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