गीतिका
छंद- सरसी
संक्षिप्त विधान- मात्रा भार- 27. 16, 11 पर यति, सम चरण दोहे के समान, इसलिए अंत गुरु-लघु आवश्यक
पदांत- 0, समांत- आर
उँगली से बढ़ कर जीवन में, देखा नहीं उदार ।
तन में गाँँठ रखे फिर भी वह करती है सहकार ।1।
लंबाई में सभी उँगलियाँँ, होतीं कब समरूप,
फिर भी रहती संग निभातीं, बस अपना किरदार ।2।
वक्त पड़े तो झुक कर, जुड़ कर मुट्ठी हरती पीर,
सामंजस्य रखे जीवन को, सरल अरु खुशगवार ।3 ।
घायल हो जाए इक उँगली, होता सबको दर्द,
उसका दर्द बाँँटतीं मिलकर जब तक वह लाचार ।4।
लगी हथेली दसों उँगलियाँँ,जब हों तेरे संग
दो-दो हाथ दिए हैं आकुल', खोल स्वर्ग के द्वार ।5।
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