7 मार्च 2022

नहीं कोयल बनाते नीड़

 गीतिका

छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- में
समांत- आने 

(कागा और कोयल की अदावत पर)
नहीं कोयल बनाते नीड़, रह जाते हैं' गाने में ।
सदा कोयल पले हैं काक, के ही आशियाने में ।1।
सदा छिप कर ही गाते गीत, छिप कर चौकसी करते,
न समझे काक क्या है राज, छिप कर गुनगुनाने में ।2।
भले ऐयार है कागा, मगर कोकिल न कम शातिर,
लड़ा करते बँटाने ध्यान, शिशुओं को बचाने में ।3।
मधुर स्वर सुन के कागा नीड़ में, यह सोच कर आया,
चलो गूँजेंगे' अपने भी, मृदुल स्वर अब घराने में ।4।
अलग रँग रूप ढब, कोकिल सा देखा, नीड़ में शिशु का,
मिला धोखा पला कोकिल, का' शिशु अपने ठिकाने में ।5।
उगे जब पंख, गाया जब, उड़े पिक संग, शिशु कोकिल,
तभी से है अदावत, काक-कोकिल की, जमाने में ।6।
हुत पीटा ढि़ढोरा काग ने, ताड़ा गया अकसर,
फिरे औघड़ बना वह, आज भी जग, आजमाने में ।7।
न मानी हार कागा ने, न कोयल सामने गाता,
युगों से पल रहा है वैर, कहते हैं फसाने में ।8।
सदा ‘आकुल’ कहे तू, मान या मत मान, यह सच है,
दिए जाते भुला अवगुण ,गुणी के जग में' छाने में ।9।
-आकुल

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