6 नवंबर 2025

कम होती जा रही दूरियाँ

 गीतिका
छंद - लावणी / कुकुभ / ताटंक (मात्रिक)
विधान- मात्राभर 3216, 14 पर यति। अंत में एक गुरु से लावणी, दो गुरु से कुकुभ और 3 गुरु हों तो ताटंक छंद कहलाता है। यदि अंत एक या एक से अधिक वाचिक हों तो वे लावणी के अंतर्गत लिए जाते है।
पदांत- दिन
समांत- अर
कम होती जा रही दूरियाँ, मौत-उम्र की दिन पर दिन।
कुछ टूटी जा रही सख्तियाँ, रोज सब्र की अब हर दिन।

आँखों, दाँतों, हाथों, पैरों पर हो रहा नियंत्रण कम,
पर बढ़ती जा रहीं तल्ख्यिाँ, मन पर तन की अब भर दिन।

टूट रहा है रोज समन्वय दिल दिमाग का अब मेरे,
भूख प्यास मे मिले फब्तियाँ, उपवासों के अकसर दिन।

चाह नहीं प्रभु बीते बाकी, उम्र रात-दिन बिस्तर पर,
मन को इतनी मिले शक्तियाँ, कलम सँभाले बढ़ कर दिन।

'आकुलका संताप यही है, जीवन में, खोया ज्यादा,
इतनी भी ना करी गल्तियाँ, बीतें अंतिम बदतर दिन।।

-#आकुल, मुक्तक-लोक

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