गीतिका
छंद-
सार
पदांत-
है
समांत-
आली
सर्दी ने दोपहर, रात, दिन, ठंडक कर डाली है।
रातों में अब चले हवा भी, कुछ ठंडक वाली है।
..
इनर, कोट, लंबी बाँहों के, कपड़े, स्वेटर, मफलर,
गाँँठ शाल, कंबल जर्सी की, करी आज खाली है।
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बंदर टोपा, हाथ पैर के, मोजे, सौर, रजाई,
धूप खा रहे अब सर्दी के, कपड़ो की पाली है।
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गरम-गरम भोजन सर्दी में, है गरमी भर जाता,
रसपाचक है ऋतु में कोई, भी भोजन थाली है।
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खेल-कूद, व्यायाम, तैरना, स्फूर्ति जगाता तन में,
ऋतुओं में यह प्रकृतिवल्लभा, ही ऋतु वैशाली है।
वैशाली- समृद्धि देने वाली, पाली- बारी
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