7 नवंबर 2025

ऋतुओं में यह प्रकृतिवल्लभा, ही ऋतु वैशाली है

गीतिका
छंद- सार
पदांत- है
समांत- आली

सर्दी ने दोपहर, रात, दिन, ठंडक कर डाली है।

रातों में अब चले हवा भी, कुछ ठंडक वाली है।

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इनर, कोट, लंबी बाँहों के, कपड़े, स्वेटर, मफलर,

गाँँठ शाल, कंबल जर्सी की, करी आज खाली है।

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बंदर टोपा, हाथ पैर के, मोजे, सौर, रजाई,

धूप खा रहे अब सर्दी के, कपड़ो की पाली है।

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गरम-गरम भोजन सर्दी में, है गरमी भर जाता,

रसपाचक है ऋतु में कोई, भी भोजन थाली है।

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खेल-कूद, व्यायाम, तैरना, स्फूर्ति जगाता तन में,

ऋतुओं में यह प्रकृतिवल्लभा, ही ऋतु वैशाली है।


वैशाली- समृद्धि देने वाली, पाली- बारी

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