11 मई 2014

माँ की महिमा

कविता गीत ग़ज़ल रुबाई। 
सबने माँ की महिमा गाई।। 
 
जल सा है माँ का मन निर्मल।
जलसा है माँ से घर हर पल।
हर रंग में घुल जाती है माँ
जल से ज्‍यों बन जाता शतदल।
माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल।
माँ गुलाबजल, माँ है संदल।
क्‍या जल-थल-नभ, गहरी खाई।
माँ की कभी नहीं हद पाई।।

माँ फूलों की बगिया जैसी।
रंगों में केसरिया जैसी।
माँ गीतों में रसिया जैसी।
माँ भोजन में दलिया जैसी।
माँ वीरा, माँ धी, माँ बहना।
माँ अनमोल जड़ी, माँ गहना।
रूप स्‍वरूप धरे जब-जब भी
दूध दही माखन सी पाई।।

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