गीतिका
छंद- मंगलवत्थु / मंगलमाया
विधान- 22 मात्रा। दोहे के सम चरण की दो अवृत्तिा 11, 11
पर यति अंत 2 गुरु से
पदांत- 0
समांत- आनी
छंदबद्ध हर
गीत, बना सकते ज्ञानी ।
दोनों हाथों खूब, दिया करते दानी ।
देशभक्ति
की राह,
गँवाते प्राणों को,
वे शहीद कहलायँ, सदा पढ़ते बानी ।
पीने भर को
जहाँ,
रोज जब पानी हो.
वे ही समझें मूल्य, बचा रखते पानी ।
महँगाई का
दौर,
बंद रक्खो मुट्ठी,
बनो कूप मंडूक, बैल फिरते घानी ।
'आकुल' जीवन श्रेष्ठ, अगर चूल्हा साझा,
एकाकी रसपान, कहाँ रखते सानी ।
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