विधान- अर्द्ध सम मात्रिक 24 मात्रीय छंद जिसमें 11,13 पर यति। अंत 2 गुरु वाचिक। लगभग दोहे का विपरीत, विषम चरण दोहे का समचरण इसलिए विषम चरणांत 21 स्वत: बनता है, रोले का सम चरण त्रिकल से और चरणांत दो गुरु वाचिक। त्रिकल के बाद त्रिकल अनिवार्य ।
पदांत- है
समांत- अल
सीख सके तो सीख, कहा है समय अटल है।
अकर्मण्य भयभीत, रहा जीना न सहल है।
नहीं कहीं भी तोड़, सका कोई पैमाना,
सदा करे जो कर्म, सुखी है और सफल है।
जो समझे सत्कर्म, सदा सर्वोपरि जाने,
करते हैं जो कर्म, उसी का भाग्य प्रबल है।
बिना प्रदूषण हटे, कल्पनातीत भोग-सुख,
इसका नहीं विकल्प, राह भी नहीं सरल है।
रह निसर्ग से विमुख, झेलना विपदाएँ नित,
सँभल सके तो ठीक, न सँभले तो हलचल है।
सहल- आसान
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