6 जनवरी 2010

रिश्‍ते

रिश्‍ते अक़सर परेशान करते हैं.
इतना तो न नादान न शैतान करते हैं.
रिसते हैं बनके नासूर उम्र भर
उस पर इन्तिहा कि एहसान करते हैं.
रिश्‍तों की तासीर चार दिन,
बाक़ी ज़‍िन्‍दगी झूठे बयान करते हैं.
दर्द लिये फिरते हैं थोड़ा-थोड़ा दिल में
कितने हैं जो यह एलान करते हैं.
कट जायेगी ज़‍िन्‍दगी यूं ही 'आकुल'
हर क़दम पे दोस्‍त हैं इत्‍मीनान करते हैं.

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