छन्द- मणिमध्या (वार्णिक)
गण विधान- भगण मगण सगण
मापनी- 211 222 112
पदांत- के
समांत- अढ़
आफत लें आगे बढ़ के ।
काम बिगाड़ें वो रढ़ के।
हो सकते थोड़े सनकी,
वे जिनकी हो भौं चढ़ के।
क्या समझें पैदाइश ही,
ईश्वर ने भेजा गढ़ के?
माँ न कुसंस्कारी जनती,
संगत दे जाती मढ़ के।
‘आकुल’ का तो है कहना,
शिक्षित हों सारे पढ़ के।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें