अब तो बाहर आओ ।
मुझे सीखना है बुनना
यह सुंदर जाल बताओ ।
क्या यह सच है तुम को आता
नहीं निकलना बाहर ?
कैसे जीती हो खाती हो
कब जाती हो तुम घर ?
मकड़ी बोली मेरा भोजन
कीट पतेंगे सारे ।
जो फँस जाते इसमें आकर
भोजन बनें हमारे ।
देख-देख कर बुनना सीखा,
नहीं निकलना सीखा,
यहीं रोज आ कर सीखो तुम
घर हैं यही हमारे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें