

बीती जो बिसराओ, बीते, साल न ऐसा दस।
चमत्कार भले ना हों, बस, हो न तहस नहस।।
आयल डिपो, हादसा पुल का, आतंकी घटनायें।
कमरतोड़ महंगाई, कितना भ्रष्टाचार गिनायें।।
क्षति हुई सर्वोपरि दस जिसकी होगी ना भरपाई।
चमत्कार कुछ कम ही हुए, देने को सिर्फ़ बधाई।।
जयपुर, मुंबई ताज होटल की आतंकी घटनायें।
ऑयल डिपो जला, सैंसेक्स धराशायी मुंह बायें।।
स्वाइन फ्लू का क़हर, हुई चीनी भी महंगी ऐसी।
फ़ीके रहे त्योहार, दाल सब्जी़ भी हुई विदेशी।।
गिरी भाजपा उल्टे मुंह, कांग्रेस केंद्र में आई।
हुए धराशायी गढ़ जिनने दी थी राम दुहाई।।
नौ में दुर्घटनायें रेल की हुई बहुत जन हानि।
सुविधायें तो बढ़ीं, सुरक्षा घटी प्रभु ही जानी।।
अनिवासी भारतीयों ने नेताओं को भ्रष्ट बताया।
आस्ट्रेलिया में नस्लवाद का दुष्कृत्य सामने आया।।
बल्ला चला सचिन का वे महारथी बने क्रिकेट में।
बाकी खेल हुए चौपट सब राजनीति की ऐंठ में।।
वर्ष अनूठा होगा क्योंकि अंक है ‘दस’ का इसमें।
हो सकते हैं कई हादसे चमत्कार भी इसमें।।
पौ बारह ना हो दस नम्बरियों की ‘आकुल’ दस में।
चमत्कार जल थल नभ हानि ना मानव के बस में।।
-आकुल