9 मई 2010

माँ


मैं संतुष्‍ट हूं
चलने उठने बैठने
खाने पीने नहाने धोने
यहाँ तक कि सोते समय भी
उसे ध्‍यान रहता है
मेरे होने का।
मुझे पूरा विश्‍वास है
बाहर की दुनिया में भी
वह मेरा ध्‍यान रखेगी।
मुझे दुलरायेगी, प्‍यार देगी
ध्‍यान रखेगी मेरा
वैसे ही जैसे इन दिनों रख रही है।
अब तो मैं भी समझने लगा हूं
मुझे बाहर की दुनिया दिखाने को
लालायित हैं सभी।
माँ भी बहुत रोमांचित है
मुझे भी ललक है
माँ को देखने की
माँ के आँचल में छिपने की
माँ की उँगली पकड़ कर
दुनिया देखने की।
जाने क्‍यूँ लगता है
माँ के बिना मैं भी
अधूरा रहूँगा
क्‍यों कि माँ को कहते सुना है
मेरे बिना वह भी अधूरी है।
ऐसा क्‍यूँ कहा उसने ?
उसके अधूरेपन को
पूरा करना है।
उसे सम्‍पूर्ण करना है।

मदर्स डे पर -आकुल

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