नव ऊर्जा सुप्रभात लिए
फिर आएगा नया साल।
इक इतिहास लिखा कल ने
पूरब की धरा हुई रक्तिम
प्रकृति की चढ़ी रही भृकुटी
इक दिन भी शांत रही ना जो
कैसे कटे रैन दिन बोझिल
कुटिल दुपहरी साँझ कटी
अब कौन नया उत्पात लिए
वेद पुराण गीता कुरान सब
धरे रिहल पर धूल चढ़ी
क्षुण्ण क्षुब्ध मानव मन कामिल
नहीं दृष्टि में नीलकण्ठ कहिं
क्षणभंगुर श्वासों के कलरव
भृंग मोह भंग कहाँ अजामिल
और कौन सी घात लिए
ऋतु संहार न कर पाया मनु
चंद्र कला,उदधि प्रचण्ड को
देख रहा जग कर दिनकर नित
धरा मौन चातक संयम धर
स्वाति विंदु के लिए प्रतीक्षित
तन-मन-धन करने को अर्पित
मानव कल अज्ञात लिए
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