कलुष को बुुहारते गीत- भानु 'भारवि'
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खड़ा भी रखते हैं। 'आकुल'जी समीपस्थ परिवेश के अहसासों के साथ देश-दुनियाँँ की अन्यथा वृत्तियों को भी गहनता से परखते है। वे ऐसी सभी चिन्ताओं से अपने अापको परिवेष्टित पाते हैं, जिनके अपसरण की समाज को बड़ी जरूरत है। वे इन स्थितियों के विरुद्ध न केवल एक सहृदय गीतकार के रूप में अपितु, संघर्षशील मार्गदर्शक के रूप में भीी समाज का मार्ग प्रशस्त करते हैं। राष्ट्रीयता, नैतिकता व सदाचार कवि के गीतों का मूल स्वर है, जिसे उन्होंने समग्र छान्दसिक अनुशासन, लयात्मकता और स्निग्ध भंगिमाओं के साथ उकेेरा है। उन गीतों में प्रयुक्त छन्द, लय और गीति स्वाभाविक, सहज और विषयानुकूल रहे हैं, जो कवि के अन्तस से नि:सृत लगते हैं, जिसके सृजन में कवि ने कोई विशेष प्रयास किये हों, ऐसा प्रतीत नहीं होता। आशा है, ये गीत सुधी पाठकों के दिल-ओ-दिमाग़ को झंकृत करते रहेंगे और चिरंतन रचे-बसे रहेंगे। - अनुष्टुप प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित इस संग्रह पर प्रकाशक, साहित्यकार और सम्पादक की कलम से (इस संग्रह से उद्धृत )
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