गीतिका
छंद- पदपादाकुलक चौपाई
पदांत- रहे
समांत- आव
अब सर्वधर्म
समभाव रहे.
अब कोई
नहीं अभाव रहे.
हो कोई
छोटा बड़ा नहीं
अब सबका
एक प्रभाव रहे.
हो आरक्षण हक, नहीं स्वार्थ,
नहिं मन
मुटाव, अलगाव रहे.
हों कारण जो कुछ भी लेकिन,
अब देशभक्ति
का भाव रहे,
हो लोकतंत्र
भी अभिमंत्रि,
अब परिमृज्य
सिरोपाव रहे.
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