कुण्डलिया
1-
1-
पानी की महिमा घनी, मान घटाय बढ़ाय।
जा सँग बैठे जाय मिल, ता रँग में रँग जाय।
ता रँग में रँग जाय, मलाई बने दूध जल।
कोई भी ना तरल, बने पानी सौ निर्मल।।
कह 'आकुल' कविराय, आँख कौ उतरै
पानी।
आँखें पायें दण्ड, उम्र भर काला-पानी।।
2-
पानी-पानी आज हम, सुन के भ्रष्टाचार।
जन जन में आक्रोश है, मौन खड़ी सरकार।।
मौन खड़ी सरकार, दुहाई देती जनता।
महँगाई का दौर, मार सब सहती जनता।।
कह 'आकुल' कविराय, कौन देगा
कुरबानी।
कल था रग में लहू, आज है पानी-पानी।।
3-
तन में जल की बावड़ी, मन जलजात समान।
जल से हरी-भरी प्रकृति, धन से मान अमान।
धन से मान अमान, धान्य से जीवन पलता।
जल करता शम जठर, उदर का पोषण करता।
कह ’आकुल’ कविराय, बचा ना जीवन में
जल।
जल जाएगी प्रकृति, बचेगा ना तन में जल।
4-
जल प्रकृति में प्रमुख
है, प्राणी में इनसान।
जल जीवन आधार है, सूरज से दिनमान।
सूरज से दिनमान, प्रकृति से बने सघन वन।
सेतु बंध सर कूप, करे संचय जल जन-जन।
कह ‘आकुल’ कविराय, व्यर्थ ना बहे
कहीं जल।
गाँव शहर हर एक, इसे समझे गंगा-जल।
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