26 अक्तूबर 2012

कुण्‍डलिया


सुनीति 

1- 
कम खा ग़म खा देख सब, तोल मोल के बोल।
मन की कर सुन सभी की, सबकी खोल न पोल।
सबकी खोल न पोल, हृदय में भेद छिपाय।
सब से रख पहचान, कौन कब काम आ जाय।
कह ’आकुल’ कविराय, वही इनसान सफलतम।
करे समय पर काम, करे व्‍यय भी कम से कम।।
2-
दानी दुश्‍मन हो भले, मूरख मित्र न होय।
संकट में पड़ गाँठ की, धन दौलत भी खोय।।
धन दौलत भी खोय, जाय सब मान प्रतिष्‍ठा।
सावधान शत्रु से, बस रखना न निष्‍ठा।।
कह ‘आकुल’ कविराय, मित्र हो तो हो जानी।
भूल शत्रुता बने, मित्र दुश्‍मन भी दानी।

भ्रष्‍टाचार 
1-

भ्रष्‍टाचारी की सदा होती आँखें तेज।
दीर्घदृष्टि वाचाल पटु, श्रीमत रखें सहेज।।
श्रीमत रखें सहेज, काम मन सा करवायें।
श्री के लिए सजग, शेष पर धता बतायें।।
कह ‘आकुल’ कविराय, असच है सच पर भारी।
जब तक जनता मौन, पलेंगे भ्रष्‍टाचारी।।
2-
गठबंधन सरकार में, मोल भाव का खेल।
इनके बिना चले नहीं, राजकाज की रेल।।
राजकाज की रेल, चले पटरी पर ऐसे।
मोल भाव का ईंधन, लेकर जैसे तैसे।।
कह ‘आकुल’ कविराय, समर्थन का अनुबंधन।
चले नहीं सरकार, रहे जो ना गठबंधन।।

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