प्रकृति से कर प्रेम तू प्राणी। बोल सभी से मीठी वाणी।।
जीवन कितना सा संसारी। मिलजुल कर रहना हितकारी।।
धरती युगों युगों से सहती। कष्ट प्रकोप आक्रमण सहती।।
पर उपकारी या अपचारी। हो वो चाहे विप्लवकारी।।
दावानल वृक्षों का कटना। ॠतु में वर्षा का जल घटना। ।
अपशिष्टों से धरा प्रदूषण। बढ़ते जाते अब खर-दूषण।।
जन जाग्रति के लिए यज्ञ हों। समाधान से ना अनभिज्ञ हों।।
घर घर जा अभियान चलायें। संसाधन उपलब्ध करायें।।
वृक्षारोपण जल संचय हो। दृढ़ निश्चय हो ना संशय हो।।
धूम्रपान और मद्यपान विष। भोजन लें सब पूर्ण निरामिष।।
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