माँ की आँखों से बहें, गंगा जमुना नीर।
कभी न माँ को कष्ट दें, फूटे कभी न पीर।
फूटे कभी न पीर, हाल हर देवें खुशियाँ।
माँ का लें आशीष, भरें इससे अंजुरियाँ।
कह 'आकुल' कविराय, उठा ले बला जहाँ की।
फिर भी करे न हाय, महत्ता ऐसी माँ की।
ममता माँ की बावरी, दौलत ही औलाद।
बंजर धरती भी फले, मिल जाये जो खाद।
मिल
जाये जो खाद, फसल झूमे लहराये।
माँ
का ही आशीष, काम जीवन में आये।
कह
‘आकुल’ कविराय, करो नित माँ की झाँकी।
जन्नत की सौगात, नियामत ममता माँ की।
'मातृ दिवस' पर सभी पाठकों को शुभकामनायें।
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