1
धीरज ना इंसान में, उग्र दिनों दिन होय।
धीरज ना इंसान में, उग्र दिनों दिन होय।
चैन
सभी का खोय, पड़ै उलझन में खुद भी।
लेता
झगड़े मोल, और खोता सुधबुध भी।।
कह
‘आकुल’ कविराय, पंक में पलता नीरज।
सबका
मिले निदान, रखे जो इंसा धीरज।।
2
धन का लोभी जो मनुज, ना समझे समझाय
मैल हाथ का समझ कर, खर्चा करता जाय।।
खर्चा करता जाय, कर्ज ले ले कर
प्राणी।
जैसे
आँखें मूँद, बैल से चलती घाणी।।
कह
आकुल कविराय, न संशय पाले मन का।
बिना
परिश्रम कर्ज, चुकेगा कैसे धन का।।
3
वाणी ऐसी मधुर हो, सबका मन हर्षाय।
वैर द्वेष सब भूल के, शत्रु मित्र बन
जाय।
शत्रु मित्र बन जाय, मित्रता हो निस्स्वार्थ।
सर्व धर्म समभाव, जगायें कर
परमार्थ।।
कह आकुल कविराय, प्रेम का भूखा
प्राणी।
फल जायें जो बोल, अमर हो जाये वाणी।।
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