1
अक्षर ज्ञान दिवाय कै, उँगली पकड़ चलाय।
पार लगाये गुरू या, केवट पार लगाय।।1।।
2
बिन गुरुत्व धरती नहीं, धुर बिन चले न चाक।
गुरुजल बिन बिजली नहीं, गुरु के बिना न धाक।।
3
सर्वोपरि है गुरू श्री, यह कहवै इतिहास।
सुर मुनि प्राणी जगत में, सभी करें अरदास।।
4
‘आकुल’ जग में गुरू से, धर्म विज्ञान प्रताप।
आश्रय जो गुरु कौ रहै, दूर रहें सन्ताप।।
गुरु को सर पै हाथ जो, भवसागर तर जाय।
श्रद्धा निष्ठा प्रेम यश, धन वैभव सब पाय।।
6
गुरु को तौल कराय जो, वो मूरख कहवाय।
तोल मोल के फेर में, यूँ ही जीवन जाय।।
7
ज्ञान गुरू दीक्षा गुरू, धर्म गुरू बेजोड़।
चलै संस्कृति इन्हीं सूँ, इनकी ना है होड़।।
8
मात पिता गुरु राष्ट्र ॠण, कोई न सकै उतार।
जब भी जैसे भी मिलें, इनकूँ कभी न तार।।
9
गुरु बिन समरथ जगत में, जी लै दो दिन खास।
फिर पड़ जाये अकेलौ, और खोय विश्वास।।
10
’आकुल’ वो बड़भाग है, ऐसौ
कहें बतायँ।
मात-पिता गुरु सिधारें,
जा के काँधे जायँ।।
गुरु पूर्णिमा पर दोहावली
गुरु पूर्णिमा पर दोहावली
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