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28 जुलाई 2015
सान्निध्य सेतु: तैलंगकुलम् समाज का पाँचवा प्रतिभा सम्मान एवं लाइ...
सान्निध्य सेतु: तैलंगकुलम् समाज का पाँचवा प्रतिभा सम्मान एवं लाइ...: सामुदायिक समन्वय, सौहार्द एवं सौमनस्यता सम्मान, साहित्य निधि सम्मान, विशिष्ट कला- साधना सम्मान, रंग पथिक सम्मान और रामादेवी भट्ट स...
25 जुलाई 2015
आईने से क्या कोई झूठ बोल सकता है (ग़ज़ल)
आईने से क्या, कोई झूठ बोल सकता है।
बिना चाबी क्या, कोई कुफ़्ल1 खोल सकता
है।
सच्चाई छिपती नहीं सात परदों में भी,
तराजू में क्या, कोई हवा तोल सकता है।
भलाई का सिला मिलता है सदा भलाई से,
समंदर में क्या, कोई ज़हर घोल सकता है।
हो जीने का अंदाज़, दुनियादारी की सिफ़त,
जिसके पास क्या, कोई दिल डोल सकता है।
दोस्त फ़रिश्ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्ते होते
हैं,
जो दोस्ती क्या, रिश्ते भी बना अनमोल सकता है।
‘आकुल’ आईने की मानो जो दोस्त भी है नहीं तो
किसी से भी क्या, कोई मन की बैठ बोल सकता है।
1. कुफ़्ल-
ताला
24 जुलाई 2015
सान्निध्य सेतु: तैलंगकुलम् का पाँचवा लाइफटाइम एचीवमेंट पुरस्कार ए...
सान्निध्य सेतु: तैलंगकुलम् का पाँचवा लाइफटाइम एचीवमेंट पुरस्कार ए...: झालवाड़ निवासी व हाड़ौती के वरिष्ठ साहित्यकार पं0 गदाधर भट्ट को लाइफ टाइम एचीवमेंट पुरस्कार। कोटा के जनकवि डा0 गोपाल कृष्ण भट्ट 'आक...
18 जुलाई 2015
ग़ज़ल
रह जाते हैं ज़िंदगी में, अनसुलझे कुछ सवाल अकसर।
रह जाते हैं तिश्नगी1 में, अनबुझे
कुछ सवाल अकसर।
मुसव्विर2 भी कभी-कभी मुत्मईन3
नहीं होते अपने फ़न से,
रह जाते हैं शर्मिंदगी में, अनकहे कुछ सवाल
अकसर।
संगतराश4 की नज़र का सानी नहीं होता
फिर भी,
रह जाते हैं तस्वीर में अनछुए कुछ कमाल अकसर।
दर्द की रौ में न बहे अश्आर5 वो ग़ज़ल
ही क्या,
रह जाते हैं ग़ज़ल में न बयाँ किए कुछ मिसाल अकसर।
दस्ते शफ़क़त6 में चूक से नाशाइस्ता7
हुए हैं कई गुफ़्ल8,
रह जाते हैं गुलज़ार में गुल हुए कुछ हलाल अकसर।
किस्साकोताह9 कि मुहब्बत में फ़ना
होते हैं परवाने ‘आकुल’,
रह जाते हैं तारीख़10 के सफ़्हों में
उलझे कुछ सवाल अकसर।
1-तिश्नगी- प्यास 2- मुसव्विर- चित्रकार
3- मुत्मईन- संतुष्ट 4- संगतराश- शिल्पकार 5- अश्आर-
शेर 6- दस्ते शफ़क़त- छत्रछाया 7- नाशाइस्ता- असफल 8- गुफ़्ल- अनुभवहीन व्यक्ति 9- किस्साकोताह-
सारांश, किंबहुना 10- तारीख़- इतिहास।
17 जुलाई 2015
डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' पर कुण्डलिया छंद
![]() |
डा0 रघुनाथ मिश्र *सहज* विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के अधिवेशन में सम्मान लेते हुए |
1
सागर सा व्यक्तित्व है,
जोश अपार अथाह।
जनवादी आक्रोश का, बहता
काव्य प्रवाह।
बहता काव्य प्रवाह, चतुर
अभिभाषक भी हैं।
मणिकांचन संयोग, मिशन प्रचारक भी हैं।
‘आकुल’ है कृतकृत्य, 'सहज' सा साथी पा कर।
बदल दिया संसार, भरा गागर
में सागर।
2
'सहज' सहज हैं सहज से, कह देते हैं बात।
बिना रुके वे सहज से, कहने में निष्णात।
कहने में निष्णात, विषय कोई सा भी हो।
कहते हैं बेबाक, सदन कोई सा भी हो।
कविपुंगव ने काव्य, रचे वे 'सहज' सहज हैं।
मेरे हैं वे दोस्त, बिलाशक 'सहज' सहज हैं।
13 जुलाई 2015
निश्चय ही सिरमौर, बनेगी अपनी हिन्दी (कुण्डलिया छंद)
1-
हिन्दी की बस बात ही, करें न अब हम लोग।
मिलजुल कर अब साथ ही, देना है सहयोग।
देना है सहयोग, राजभाषा है अपनी।
नहीं बनी अब तलक, राष्ट्रभाषा यह अपनी।
होगा जन-जन नाद, प्रखर तब होगी हिन्दी।
लेंगे जब संकल्प, शिखर पर होगी हिन्दी।।
2-
मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।
वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।
बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।
कितनी है परवाज़, तभी संकेत मिलेगा।
इकजुट हो बस देश, अब हिन्दी की क्रांति से।
आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से। ।
3-
हिन्दी के उन्नयन को, बने राय मिल बैठ।
गाँव-गाँव अभियान से, सभी बनायें पैठ।
सभी बनाये पैठ, सोच सबकी बदलेगी।
निज भाषा का गर्व, नयी इक दिशा मिलेगी।
कह 'आकुल' कविराय, अनोखी अपनी हिन्दी।
निश्चय ही सिरमौर, बनेगी अपनी हिन्दी।।
हिन्दी की बस बात ही, करें न अब हम लोग।
मिलजुल कर अब साथ ही, देना है सहयोग।
देना है सहयोग, राजभाषा है अपनी।
नहीं बनी अब तलक, राष्ट्रभाषा यह अपनी।
होगा जन-जन नाद, प्रखर तब होगी हिन्दी।
लेंगे जब संकल्प, शिखर पर होगी हिन्दी।।
2-
मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।
वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।
बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।
कितनी है परवाज़, तभी संकेत मिलेगा।
इकजुट हो बस देश, अब हिन्दी की क्रांति से।
आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से। ।
3-
हिन्दी के उन्नयन को, बने राय मिल बैठ।
गाँव-गाँव अभियान से, सभी बनायें पैठ।
सभी बनाये पैठ, सोच सबकी बदलेगी।
निज भाषा का गर्व, नयी इक दिशा मिलेगी।
कह 'आकुल' कविराय, अनोखी अपनी हिन्दी।
निश्चय ही सिरमौर, बनेगी अपनी हिन्दी।।
12 जुलाई 2015
अकसर लोग कहा करते हैं
अकसर लोग कहा करते हैं
लोक लुभावन मिसरे
धूप हवा में धूप बड़ी।
कुछ पंछी स्वच्छंद विचरते
कुछ पिँजरों में कैदी
चहका करते हैं फिर भी
कुछ खूँखार वनों में रहते
कुछ पहरों में कैदी
सुविधा पाते हैं फिर भी
अकसर लोग कहा करते हैं
जीवन दर्शन सारा
अहं, रूप, धन चार घड़ी।
भँवरों के गुंजन से छूटे
पट्टबंध कलियों के
बागबान की कौन सुने?
कस्तूरी कुण्डल में बसती
वही गंध सदियों से
व्यथा मृगों की कौन सुने
?
अकसर लोग कहा करते हैं
कितने भी हों खतरे
मृगतृष्णा में धूप जड़ी।
प्रस्तर युग के मानव चढ़ कर
आसमान पर बैठे
लिए बुद्धि बल प्रेम आलाप
बदली हवा समय भी बदला
फिर भी हाथ धरे बैठे
फिर भी हाथ धरे बैठे
ना प्रकृति का तनिक विलाप
अकसर लोग कहा करते हैं
खुशियाँ सुख चौखट पर
रुकते हैं दो चार घड़ी।
अकसर लोग कहा करते हैं।
3 जुलाई 2015
मेरे घर आँगन में गौरैया नित आओ
मेरे घर आँगन में, गौरैया नित आओ।।
खुशबू से महके घर, मेरा नंदन कानन,
जूही, चंपा कनेर, हरसिंगार लगाये।
कैसा रिश्ता था वह, कैसी परिपाटी थी,
समझे नहीं आज तक, जो समझा जाती थीं।
अब समझे हैं आओ, कुछ नवगीत सुनाओ।।
यहाँ नहीं आएगा, कोई हाली माली।
कोई फिक्र ना कोई, बंधन ना बहेलिया,
नीचे उपवन ऊपर, नील गगन की थाली।
जिस कोने में चाहो, अपना नीड़ बसाओ।।
तुम मानव की बस्ती, निकट रहो जन्मांतर।
विचरण करो सदा ना, बनो कभी यायावर।
गगन बहुत सूना है, प्रकृति है खोई खोई,
शुरूआत करनी है, तुमको यहाँ बसा कर।
सब पंखी आऐंगे, तुम भी प्रीत बढ़ाओ।।
ढेर परिंडे बाँधे, कई नीड़ बनवाये।
विकसित किया सरोवर, कई पेड़ लगवाये।खुशबू से महके घर, मेरा नंदन कानन,
जूही, चंपा कनेर, हरसिंगार लगाये।
आओ गौरी मैया, घर परिवार बसाओ।।
तुम जो रोज सवेरे, आकर गा जाती थींA
बिना घड़ी के ससमय, हमें जगा जाती थीं। कैसा रिश्ता था वह, कैसी परिपाटी थी,
समझे नहीं आज तक, जो समझा जाती थीं।
अब समझे हैं आओ, कुछ नवगीत सुनाओ।।
यहाँ नहीं आएगा, कोई हाली माली।
कोई फिक्र ना कोई, बंधन ना बहेलिया,
नीचे उपवन ऊपर, नील गगन की थाली।
जिस कोने में चाहो, अपना नीड़ बसाओ।।
तुम मानव की बस्ती, निकट रहो जन्मांतर।
गगन बहुत सूना है, प्रकृति है खोई खोई,
शुरूआत करनी है, तुमको यहाँ बसा कर।
सब पंखी आऐंगे, तुम भी प्रीत बढ़ाओ।।
1 जुलाई 2015
राम से नेह लगाया कर

राम से नेह लगाया कर तू , तर जाएगा प्राणी।।
भवसागर से भरा हलाहल, क्या बिसात है तेरी।
बिना पिये ना निकल सकेगा, क्या औकात है तेरी।
राम की नैया से ही पार, उतर पाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,------------------।।
धन्य है केवट की भक्ति, प्रभु राम के पैर धुलाए।
धन्य है शबरी की भक्ति, प्रभु राम को बेर खिलाए।
भज मन राम धन्य जीवन तू, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
राम भक्त हनुमान हुए हैं, अमर है जिनकी गाथा।
जिनके हृदय बिराजे राम, लखन और सीता माता।

राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
घर भेदी ने लंका ढाई, ये दुनिया ने जाना।
रामराज्य आया घर घर वहाँ, क्या सबने ये जाना।
भक्त विभीषण सा बन जा तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
व़न-वन गाँव-गाँव घूमे, रघुवर ने अलख जगाई।
नर, नारी, पक्षी, पशु सबको, धर्म की राह बताई।
ऐसी भक्ति कर भवसागर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
मोह में प्राण गये दशरथ के, अहं से रावण हारा।
पत्थर बनी अहल्या तारी, बाली भी संहारा।

राम से नेह लगाया कर तू,-------------------।।
क्रोध, अहं, मोह बर्बरता ,से बल सुबुद्धि भरमाई।
शिवधुन उठा न अंगद पैर, न लंका ही बच पाई।
क्षणभंगुर सा जीवन पावन, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर-------------------।।
ऱाम नाम संकीर्तन कर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया करतू, तर जाएगा प्राणी।।
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