3 जुलाई 2015

मेरे घर आँगन में गौरैया नित आओ

मेरे घर आँगन में, गौरैया नित आओ।।

ढेर परिंडे बाँधे, कई नीड़ बनवाये।
विकसित किया सरोवर, कई पेड़ लगवाये।
खुशबू से महके घर, मेरा नंदन कानन,
जूही, चंपा कनेर, हरसिंगार लगाये।

आओ गौरी मैया, घर परिवार बसाओ।।

तुम जो रोज सवेरे, आकर गा जाती थींA
बिना घड़ी के ससमय, हमें जगा जाती थीं।  
कैसा रिश्‍ता था वह, कैसी परिपाटी थी,
समझे नहीं आज तक, जो समझा जाती थीं।
 
अब समझे हैं आओ, कुछ नवगीत सुनाओ।।


खा कर दाना चुग्गा, फुदको डाली डाली।
यहाँ नहीं आएगा, कोई हाली माली।
कोई फि‍क्र ना कोई, बंधन ना बहेलिया,
नीचे उपवन ऊपर, नील गगन की थाली।
 
जिस कोने में चाहो, अपना नीड़ बसाओ।।

तुम मानव की बस्‍ती, निकट रहो जन्‍मांतर।
विचरण करो सदा ना, बनो कभी यायावर।
गगन बहुत सूना है, प्रकृति है खोई खोई,
शुरूआत करनी है, तुमको यहाँ बसा कर।

सब पंखी आऐंगे, तुम भी प्रीत बढ़ाओ।।   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें