मेरे घर आँगन में, गौरैया नित आओ।।
खुशबू से महके घर, मेरा नंदन कानन,
जूही, चंपा कनेर, हरसिंगार लगाये।
कैसा रिश्ता था वह, कैसी परिपाटी थी,
समझे नहीं आज तक, जो समझा जाती थीं।
अब समझे हैं आओ, कुछ नवगीत सुनाओ।।
यहाँ नहीं आएगा, कोई हाली माली।
कोई फिक्र ना कोई, बंधन ना बहेलिया,
नीचे उपवन ऊपर, नील गगन की थाली।
जिस कोने में चाहो, अपना नीड़ बसाओ।।
तुम मानव की बस्ती, निकट रहो जन्मांतर।
विचरण करो सदा ना, बनो कभी यायावर।
गगन बहुत सूना है, प्रकृति है खोई खोई,
शुरूआत करनी है, तुमको यहाँ बसा कर।
सब पंखी आऐंगे, तुम भी प्रीत बढ़ाओ।।
ढेर परिंडे बाँधे, कई नीड़ बनवाये।
विकसित किया सरोवर, कई पेड़ लगवाये।खुशबू से महके घर, मेरा नंदन कानन,
जूही, चंपा कनेर, हरसिंगार लगाये।
आओ गौरी मैया, घर परिवार बसाओ।।
तुम जो रोज सवेरे, आकर गा जाती थींA
बिना घड़ी के ससमय, हमें जगा जाती थीं। कैसा रिश्ता था वह, कैसी परिपाटी थी,
समझे नहीं आज तक, जो समझा जाती थीं।
अब समझे हैं आओ, कुछ नवगीत सुनाओ।।
यहाँ नहीं आएगा, कोई हाली माली।
कोई फिक्र ना कोई, बंधन ना बहेलिया,
नीचे उपवन ऊपर, नील गगन की थाली।
जिस कोने में चाहो, अपना नीड़ बसाओ।।
तुम मानव की बस्ती, निकट रहो जन्मांतर।
गगन बहुत सूना है, प्रकृति है खोई खोई,
शुरूआत करनी है, तुमको यहाँ बसा कर।
सब पंखी आऐंगे, तुम भी प्रीत बढ़ाओ।।
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