12 जुलाई 2015

अकसर लोग कहा करते हैं

 
 
अकसर लोग कहा करते हैं
लोक लुभावन मिसरे
धूप हवा में धूप बड़ी।
 
कुछ पंछी स्‍वच्‍छंद विचरते
कुछ पिँजरों में कैदी
चहका करते हैं फि‍र भी
कुछ खूँखार वनों में रहते
कुछ पहरों में कैदी
सुविधा पाते हैं फि‍र भी
 
अकसर लोग कहा करते हैं
जीवन दर्शन सारा
अहं, रूप, धन चार घड़ी।
 
भँवरों के गुंजन से छूटे
पट्टबंध कलियों के
बागबान की कौन सुने?
कस्‍तूरी कुण्‍डल में बसती
वही गंध सदियों से
व्‍यथा मृगों की कौन सुने ?
 
अकसर लोग कहा करते हैं
कितने भी हों खतरे
मृगतृष्‍णा में धूप जड़ी।
 
प्रस्‍तर युग के मानव चढ़ कर
आसमान पर बैठे
लिए बुद्धि बल प्रेम आलाप
बदली हवा समय भी बदला
फि‍र भी हाथ धरे बैठे
ना प्रकृति का तनिक विलाप
 
अकसर लोग कहा करते हैं
खुशियाँ सुख चौखट पर
रुकते हैं दो चार घड़ी।
 
अकसर लोग कहा करते हैं।
 

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