डा0 रघुनाथ मिश्र *सहज* विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के अधिवेशन में सम्मान लेते हुए |
1
सागर सा व्यक्तित्व है,
जोश अपार अथाह।
जनवादी आक्रोश का, बहता
काव्य प्रवाह।
बहता काव्य प्रवाह, चतुर
अभिभाषक भी हैं।
मणिकांचन संयोग, मिशन प्रचारक भी हैं।
‘आकुल’ है कृतकृत्य, 'सहज' सा साथी पा कर।
बदल दिया संसार, भरा गागर
में सागर।
2
'सहज' सहज हैं सहज से, कह देते हैं बात।
बिना रुके वे सहज से, कहने में निष्णात।
कहने में निष्णात, विषय कोई सा भी हो।
कहते हैं बेबाक, सदन कोई सा भी हो।
कविपुंगव ने काव्य, रचे वे 'सहज' सहज हैं।
मेरे हैं वे दोस्त, बिलाशक 'सहज' सहज हैं।
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