(नवगीत )
जोश अभी भी नहीं हुआ कम
देश मेरा खुशहाल है।
भ्रष्टाचारी दलदल में
इंदीवर खिल रहे देश में
आम आदमी मेहनतकश है
खास जी रहे ऐश में
सबको देती खुशी हो गई
उमर उनहत्तर साल है।
आदर्शों की ले के गठरिया
खड़ा कबीर बज़ा़र में
बापू के ब्ंदर भी उछलते
देखे हैं सरकार में
संस्कृति के वीजारोपण से
बना वो वृक्ष तमाल है।
सर्वे भवन्तु सुखिन: व
वसुधैवकुटुम्बकम् का दर्शन
गीता-वेद-पुराणों से
मिलता है सबको दिग्दर्शन
दशावतारों की भूू पर
महाभारत काव्य विशाल है।
हवा चले कैसी कितनी भी
राष्ट्रगीत और गान से
ध्वज मेरे भारत का हमेशा
फहराएगा शान से
सत्यमेव जयते ब्रह्मास्त्र व
वन्दे मातरम् ढाल है।
(हाल ही में प्रकाशित नवगीत संग्रह 'जब से मन की नाव चली' से )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें