स्तुति भी इक योग है, जैसे
चिन्तन, ध्यान.
यह दृढ इच्छा शक्ति को,
प्रबल करे यह मान.
योग शुभंकर वृद्धि का, बल,
मति, कर्म समेत.
मान प्रतिष्ठा दे सदा,
गुरु, प्रभु, जनक, समान
निन्दा (दोहा मुक्तक)
बुरा जो देखन मैं चला, पढ़,
क्या साबित होय.
क्यों फिर तू निन्दा करे,
क्यों आनन्दित होय.
जीवन सुख-दुख की घटा, कर्मों
से छँट जाय,
’आकुल’ निन्दा द्वेष से,
कभी नहीं हित होय.
संस्तुति
(मुक्तक)
तू संस्तुति कर, तू वंदन
कर, ध्यान योग कर चिंतन कर.
मन को तू प्रतिबद्ध, शुद्ध
कर, मन को फिर तू मंथन कर.
प्रकृति धरोहर है जीवन ये,
पंच तत्व से है निर्मित,
मुक्त प्रदूषण से धरती कर,
प्रकृति संग गठबंधन कर.
नमस्कार
(मुक्तक)
सुबह
सवेरे नमस्कार कर, लो आशीष बड़ों से.
द्वेष,
शत्रुता, ढाह, अहं सब, मिटते नींव, जड़ो से.
ढाई कोस चले छल-बल से, क्या
हासिल हो ‘आकुल’,
प्रेम डगर पर चलो रखा क्या,
छल प्रपंच पचड़ों से.
कृपया अपने मुक्तक के साथ ..क्लिष्ट शब्दों का अर्थ भी लिख दिया करें.... हमें समझने में सरलता रहेगी :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय उक्त मुक्तकों में शुभंकर को छोड़ कर ऐसा कोई शब्द नहीं जो प्रचलित नहीं. फिर भी यदि कोई शब्द कठिन लगे तो बतायें. शुभंकर- शुभ या मंगल करने वाला. संस्तुति- अनुशंसा (रिकमेंडेशन, प्रतिबद्ध- बँधा हुआ, दृढ् निश्चय किया हुआ, जिसे अलग न किया जा सके; पंचतत्व- आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, हवा. ढाह- ईर्ष्या.
हटाएंब्लॉग पर भ्रमण करने के लिए आभार.
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