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26 जुलाई 2018
25 जुलाई 2018
है जरूरत देश में यह राज चलना चाहिए (गीतिका)
छंद-
गीतिका
मापनी
2122 2122 2122 212
पदांत-
चाहिए.
समांत-
अलना.
अब
घरों से आदमी निर्भय निकलना चाहिए.
है
जरूरत देश में यह राज चलना चाहिए.
कर्म
का प्रतिफल मिले इतना कि हर घर हो सुखी,
अब न बच्चा एक भी घर में मचलना चाहिए.
अब न बच्चा एक भी घर में मचलना चाहिए.
अब
बग़ीचों में न कुचली जायें’
कलियाँ एक भी,
इस चमन में अब नहीं सैयाद पलना चाहिए.
इस चमन में अब नहीं सैयाद पलना चाहिए.
बाढ़, सूखा,
आपदा, भूकंप, जहरीली हवा,
अब प्रदूषण से न धरती को दहलना चाहिए.
अब प्रदूषण से न धरती को दहलना चाहिए.
लो
चलो कश्मीर को अब फिर बनायें स्वर्ग सा,
अब बरफ केसर की’ गर्मी से पिघलना चाहिए.
अब बरफ केसर की’ गर्मी से पिघलना चाहिए.
24 जुलाई 2018
बादलों का नभ पे छाना (गीतिका)
छंद- मनोरम
(अपदांत गीतिका)
बादलों
का नभ पे’ छाना.
दामिनी का कड़कड़ाना.
दे
गई संदेश बारिश,
आ गया मौसम सुहाना.
नृत्य
केकी का सुहाए,
और कोयल का भी’ गाना.
मन
भी' चाहे बालकों सी,
मस्तियाँ करते नहाना.
लोकगायन, नृत्य,
झूले,
उत्स घर घर में मनाना.
मापनी - 2122 2122
दामिनी का कड़कड़ाना.
आ गया मौसम सुहाना.
और कोयल का भी’ गाना.
मस्तियाँ करते नहाना.
उत्स घर घर में मनाना.
है
यही संस्कृति हमारी,
गीत स्वागत में सुनाना
गीत स्वागत में सुनाना
19 जुलाई 2018
पी मेरा बस शांत समंदर जैसा हो (गीतिका)
छंद- रास
विधान- मात्रा भार 22. 8,8, 6 पर यति, अंत 112. कथ्य / शिल्प की माँग हो तो पदांत 22 अनुमन्य है.
पदांत- जैसा हो.
समांत- अर
पी मेरा बस, शांत समंदर, जैसा हो.
सुंदरता में, पूनम चंदर, जैसा हो.

बोले तो वह, लगे पास ही, सागर के,
बजतीं झालर, घंटी मंदर, जैसा हो.
हाथ लगाते, फिसले ना वह, साहिल सा,
बाहर वैसा, हो वह अंदर, जैसा हो.
नहीं चाहना, राजपाट धन, दौलत की,
नहीं पुरंदर, नहीं सिकंदर, जैसा हो.
ज्वार न आए, बाढ़ न आए, जीवन में,
कभी नचाये, नहीं कलंदर, जैसा हो.
विधान- मात्रा भार 22. 8,8, 6 पर यति, अंत 112. कथ्य / शिल्प की माँग हो तो पदांत 22 अनुमन्य है.
पदांत- जैसा हो.
समांत- अर
पी मेरा बस, शांत समंदर, जैसा हो.
सुंदरता में, पूनम चंदर, जैसा हो.

बोले तो वह, लगे पास ही, सागर के,
बजतीं झालर, घंटी मंदर, जैसा हो.
हाथ लगाते, फिसले ना वह, साहिल सा,
बाहर वैसा, हो वह अंदर, जैसा हो.
नहीं चाहना, राजपाट धन, दौलत की,
नहीं पुरंदर, नहीं सिकंदर, जैसा हो.
ज्वार न आए, बाढ़ न आए, जीवन में,
कभी नचाये, नहीं कलंदर, जैसा हो.
13 जुलाई 2018
एक सच यह कि उम्र ढलती है (गीतिका)
छ्न्द - लौकिक अनाम मात्रिक (मापनी युक्त)
मापनी- 2122
12 12 22
समांत-
अती
पदांत-
है
एक सच यह कि उम्र ढलती है
सत्य ही है हवा बदलती हैं
भाग्य रेखा करम से’ बनती है.
जिंदगी से बने घरोंदे हैं,
मौत कब इक जगह ठहरती है.
कर गुजर भूल जा गिले-शिकवे,
एक दिन तो बरफ पिघलती है.
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