सुंदरी सवैया मुक्तक-1
मापनी- 112 112 112 112 112 112 112 112 2
प्रभु चाह नहीं कि भरा घर हो धन-दौलत नौकर-चाकर भी हो.
प्रभु चाह नहीं कि बराबर हो मुझ सा न कहीं घर-बाहर भी हो.
प्रभु चाह यही बस 'आकुल' की न निरादर हो उससे बिरले भी ,
प्रभु चाह यही कि जरा-तन से बस दानवता न उजागर भी हो.
सुंदरी सवैया मुक्तक-2
मापनी- 112 112 112 112 112 112 112 112 2
जब राह नहीं मिलती तुझको प्रभु के दर पे विनती कर आना।
मन में रख तू मत चाह कभी सब को प्रभु दे विनती कर आना।
पथभ्रष्ट न हो यदि मोड़ सके इस जीवन को कर ले कुछ भी तू,
हित हो न सके नहिं हाथ धरूँ दुखती रग पे विनती कर आना।
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