गीत
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उठा बोरिया-बिस्तर चले छिपा कर मुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर चले छिपा कर मुख नेताजी।
सोच रहे बिन कुर्सी के भोगा कब सुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर.....
सौ सुनार की इक लुहार की, चोट पड़ी तब समझे,
कहा जाय ना सहा जाय हालत बिगड़ी तब समझे,
खिसक लिए चुपचाप हवा का देख के रुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर.....
जनादेश को देख धड़कनें बढ़ीं कहें अब किससे,
अब बेमानी कौन सुनेगा पाँच साल के किस्से,
लुटे-पिटे कैसे जाएंँ जनता सम्मुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर.....
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