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कक्षा 6 के लिए - कक्षा 8 के लिए -
धरती को हम स्वर्ग बनाएँँ आने वाला कल
आओ अब सौगंध यह खाएँ। आने वाला कल ढेरों सौगात लिए आये।
दोस्त फ़रिश्ते होते हैं. बाक़ी सब रिश्ते होते हैं.
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कक्षा 6 के लिए - कक्षा 8 के लिए -
धरती को हम स्वर्ग बनाएँँ आने वाला कल
आओ अब सौगंध यह खाएँ। आने वाला कल ढेरों सौगात लिए आये।
लता है, जहाँ पाम्परिक ज्ञान और आधुनिक नवाचार एक साथ मिलते हैं।
समारोह की अध्यक्षता कला महाविद्यालय, कोटा के एसोसिएट प्रोफेसर रामावतार मेघवाल ने की। बीज भाषण अतिथि प्रोफसर के. बी. भरतीय ने दिया। हिन्दी की दशा दिशा पर कला महाविद्यालय के ही प्रोफसर डॉ. विवेक मिश्र ने अपने विचार रखे। इस कार्यक्रम पर रखे गए विषय हिदी का वैश्विक संदर्भ- चुनौतियाँ एवं संभावना पर अतिथियों ने अपने विचार रखे।
छंदों पर आधारित पुस्तक का विमोचन सभी अतिथियों ने किया। पुस्तक का परिचय व छंदों पर अपनी बात करते हुए डॉ. आकुल ने बताया कि छंद वेदों से आए हैं। छंदों को वेदपुरुष का चरण बताते हुए कहा कि वेदों के छ: अंग हैं शिक्षा, व्याकरण, कल्प, छंद, निरुक्त और ज्योतिष। आज शैक्षिक पाठ्यक्रमों में शिक्षा, व्याकरण और शब्द शास्त्र (निरुक्त) को सम्मिलित किया गया है किंतु छंद को नहीं। हम माध्यमिक शिक्षा से कबीर, रहीम के दोहे सम्मिलित करते हैं किंतु छंदों के प्राथमिक ज्ञान तक को शिक्षा के पाठ्यक्रमों मेकं सम्मिलित नहीं किया जाता, जिसकी आज आवश्यकता है। छंद हमारे चारों ओर बिखरे पड़े हैं, हम बोलते हैं, गाते हैं, हमें कंठस्थ तक हैं किंतु हम नहीं जानते कि ये किन किन छंदों में रचे हुए हैं। उन्होंने कितने ही गीतों, श्लोंकों, मंगलाचरणों, प्रार्थना, मंत्रों, प्रार्थनाओं आदि का उदाहरण दे कर छंदों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि हमारी आराध्य सम्पूर्ण पवित्र गीता अनुष्टुप् छंद पर आधारित है। कालिदास का
मेघदूत सम्पूर्ण मंदाक्रांता छंद पर आधारित है। अंत में उन्होंने ‘छंदों का ज्ञान हमें वेदों की ओर मोड़ेगा तभी हम वसुधैवकुटुम्बकम और विश्वगुरु की संकल्पना को तभी साकार कर सकते हैं’ से वक्तव्य का समाहार किया
समारोह में सभी को प्रतिभा सम्मान और हिंदी सेवी अलंकरण सम्मान वितरित किये गय। पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
विहित कर्म सर्वजन सहज मन, करें।
इतना करें न कर पाएँ तर्पण यदि ,
समक्ष सूर्य जलांजलि अर्चन, करें।
मृत्यु चतुर्दशी पूर्णिमा
हो, अगर,
व्यतीपात महालय प्रबंधन, करें।
श्राद्ध हो सके न परिस्थितिवश किसी,
सर्वपितृ मावस समावर्तन, करें।
न कर पाएँ फिर
भी सकारण, तभी,
बिना गऊ ग्रास दे न भोजन, करें।
संस्कार हम सब के धरोहर, सभी,
समाधान ढूँढें न विलोपन, करें।
सदा सोचते रहें पीढ़ियों के, लिए,
कि क्या दे चलें नित्य मंथन करें।
गीतिका