भाईचारा बढ़े, संग हम, सब त्योहार मनायें।
एक ही घर, परिवार, शहर के हैं, सबको अपनायें।
क्यूँ आतंक, घृणा, बर्बरता, फैली गली-गली है।
क्यूँ बरपाती क़हर फ़जाँ, यह तो यहाँ
बढ़ी-पली है।
पैठी हुई जड़ें गहरी, संस्कृति की
युगों-युगों से,
आएँ कैसे भी ज़लज़ले, यह कभी नहीं पिघली
है।
मिलें राह जो भूले-भटके, उनको राह बतायें।
भाईचारा बढ़े, संग हम, सब त्योहार मनायें।।
दामन ना छूटे सच का, ना लालच लूटे घर को।
हिंसा मजहब के दम, जेहादी बन शहर-शहर को।
शह देते जो क़ाफ़िर हैं, दुश्मन हैं, अम्नो वफ़ा
के,
बच के रहना और बचाना है, हर दीद-ए-तर को।
बात तो तब है, घर-घर को हम, एक मिसाल बनायें।
भाईचारा बढ़े संग हम सब त्योहार मनायें।।
ईद-दिवाली-राखी, मस्जिद-मंदिर-वाहे गुरु द्वारे।
मिसल सभी हैं बेमिसाल, मंज़िल इक, रस्ते सारे।
देते हैं सब सीख, एक ईश्वर है, एक खुदा है,
इक आकाश तले लख तारे, हम जमीन पर सारे।
अम्नो वफ़ा की राह चलें, जीवन रोशन कर जायें।।
भाईचारा बढ़े संग हम सब त्योहार मनायें।
कोटा- 20-08-2012
aakul bhai aapki is kvita ko chori kr me meri facebook pr daal rhaa hun pyar ki baat hai isliyen chori bhi hai or sinazori bhi eid mubark ho or bhttrin lekhn ke liyen mubarktbad ..akhtar khan akela kota rajsthan
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