दोहे
कोयल कौ घर फोड़ कै, घर घर कागा रोय।
घड़ियल आँसू देख कै, कोउ न वाको होय।।1।।
बड़-बड़ बानी बोल कै, कागा मान घटाय।
कोऊ वाकौ यार है, ‘आकुल’ कोई बताय।।2।।
चिरजीवी की काकचेष्टा, जग ने करी बखान।
पिक बैरी, आहत सीता, खोयो सब सम्मान।।3।।
पिक के घर में सेव कै, कागा पिक ना होय।
लाख मलाई चाट कै, काला सित ना होय।।4।।
मेहनत कर कै घर करे, पिक से यारी होय।
कागा सौ ना जीव है, ऐयारी में कोय।।5।।
गो,बामन बिन कनागत, दशाह घाट बिन काक।
सद्गति बिन उत्तर करम, जीवन का बिन नाक।।6।।
कागा महिमा जान ल्यो्, पण्डित काकभुशण्ड।
इन्द्र पुत्र जयन्त कूँ, एक आँख को दण्ड।।7।।
आमिष भोजी कागला, कोई ना प्रीत बढ़ाय।
औघड़ सौ बन-बन घूमै, यूँ ही जीवन जाय।।8।।
कोयल-बुलबुल ना लड़ें, दोनों मीठौ गायँ।
प्रीत बढ़ावै दोस्तीं, कागा समझै नायँ।।9।।
‘आकुल’ या संसार में, तू कागा से सीख।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से भीख।।10।।
Wah
जवाब देंहटाएंNice post.
बहुत सुन्दर दोहे प्रस्तुत किये हैं आपने. मेरी बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। आपकी कौए के ऊपर रचना बहतु सी सुन्दर और उस पर दोहा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना है आपकी।
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