गीतिका
प्रदत्त छन्द- सखी
विधान- तीन चौकल + गुरु, पदपादाकुलक छन्द की लय
पदान्त- हो
समान्त- अति
दुर्योधन सी ना मति हो।
सम्यक् दृष्टि, मधुर वाणी,
जीवनोद्देश्य उन्नति हो।2।
हो न प्रकृति संदेहास्पद,
सम्बन्धों की ना क्षति हो।3।
साहित्य, कला, संस्कृति में,
संगति से बनी नियति हो।4।
न्याय, वसुधैवकुटुम्बकम्,
आतिथ्य सदा संस्कृति हो।5।
हो मान्य गीतिका जग में,
अब कुछ ऐसी परिणति हो।6।
हिन्दी बने राष्ट्रभाषा,
’आकुल’ न और अब अति हो।7।
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