कुण्डलियाँ
(1)
बच्चे-बूढ़े-प्रोढ़-नार-नर, सब हों अक्षरज्ञानी।
कैसे समझेंगे दुनिया को, अनपढ़ और अज्ञानी।
अनपढ़ और अज्ञानी प्राय:, रहें कूप मण्डूक।
मिले सफलता उनको ही, न भूल करें न चूक।
कह ‘आकुल’ कविराय साक्षर, कभी न खायें गच्चे।
प्रगति सुनिश्चित जहाँ साक्षर, नर, नारी और बच्चे।।
(2)
कल पढ़ता हो आज पढ़, पढ़ना ही भवितव्य।
कंटकीर्ण है मार्ग अशिक्षित, दूर बहुत गंतव्य।
दूर बहुत गंतव्य मिलेंगे, धोखे, छल, प्रतिकारी।
और मिलेंगे मूढ़, निरक्षर, पाखण्डी, व्यभिचारी।
कह ‘आकुल’ कविराय, सँवारे साक्षरता हर पल।
संस्कार से आत्मशुद्धि, शिक्षा से आज और कल।।
(3)
जनसंख्या वृद्धि, महँगाई, पर्यावरण अनदेखी।
कभी न समझे वृक्षारोपण, सदा करी अनदेखी।
सदा करी अनदेखी हो घर-घर शिक्षा अनिवार्य।
ढाणी-गाँव बचे न कोय निरक्षर भट्टाचार्य।
कह ‘आकुल’ कविराय बढ़ानी होगी साक्षर संख्या।
कहिं न हमारी चीन देश से बढ़ जाये जनसंख्या।।
(विश्व साक्षरता दिवस पर)
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