1 जनवरी 2013

कहने से कुछ ना होगा अब

मैंनें तुमको शब्‍द दिये, समवेत स्‍वरों में गाना है।
कहने से कुछ ना होगा अब, अमली जामा पहनाना है।

सुन चुके बहुत, सह चुके बहुत, फि‍र ऐसे वक्‍़त न आने हैं।
यह वक्‍़त चुके ना, सम्‍हलो तुम, बहुतेरे कर्ज़ चुकाने हैं।
कितने आए, आएँगे भी पर, आज तुम्‍हें कर जाना है।
कहने से कुछ न होगा अब------------

नारी परिवार प्रतिष्‍ठा की, ख़ातिर सहती चुपचाप रही।
भूडोल, प्रभंजन, प्रलय न हो, धरती सहती संताप रही।
पिघले बर्फानी कुण्‍ठा अब, आतप स्‍नान कराना है।
कहने से कुछ न होगा अब-----------

नर पुंगव, रण बाँकों, सिंहों के लहँड़े जुड़ने होंगे।
दुष्‍कर्मी, व्‍यभिचारी, पाखण्‍डी के छक्‍के छुड़ने होंगे।
महँगी माँदों में छिपे हुए, दुश्‍मन को बाहर लाना है।
कहने से कुछ न होगा अब---------

झंझावातों के डर से, तूफाँ आना न छोड़ेंगे।
आँधी, चक्रवात, बवण्‍डर से, पंछी उड़ना न छोड़ेंगे।
न छोड़ेंगे आतंकी हद, उन सबको सबक़ सिखाना है।
कहने से कु्छ न होगा अब--------

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