कहने से कुछ ना होगा
अब, अमली जामा पहनाना है।
सुन चुके बहुत, सह
चुके बहुत, फिर ऐसे वक़्त न आने हैं।
यह वक़्त चुके ना,
सम्हलो तुम, बहुतेरे कर्ज़ चुकाने हैं।
कितने आए, आएँगे भी
पर, आज तुम्हें कर जाना है।
कहने से कुछ न होगा
अब------------
नारी परिवार प्रतिष्ठा
की, ख़ातिर सहती चुपचाप रही।
भूडोल, प्रभंजन,
प्रलय न हो, धरती सहती संताप रही।
पिघले बर्फानी कुण्ठा
अब, आतप स्नान कराना है।
कहने से कुछ न होगा
अब-----------
नर पुंगव, रण
बाँकों, सिंहों के लहँड़े जुड़ने होंगे।
दुष्कर्मी, व्यभिचारी, पाखण्डी के छक्के छुड़ने होंगे।
महँगी माँदों में
छिपे हुए, दुश्मन को बाहर लाना है।
कहने से कुछ न होगा
अब---------
झंझावातों के डर से,
तूफाँ आना न छोड़ेंगे।
आँधी, चक्रवात, बवण्डर
से, पंछी उड़ना न छोड़ेंगे।
न छोड़ेंगे आतंकी हद,
उन सबको सबक़ सिखाना है।
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