11 अगस्त 2022

संस्‍कार ही तो हैं सँभाले डोर रिश्‍तों की

 गीतिका

छंद- माधुरी

मापनी- 2212 2212 2212 22

पदांत- रिश्‍तों की

समांत- ओर

संस्‍कार ही तो हैं सँभाले डोर रिश्‍तों की ।

सबको बतायें अहमियत पुरजोर रिश्‍तों की ।

फुरसत नहीं है जब किसी को दर्द में तो फिर ।

किस काम की हैं बंदिशें तब घोर रिश्‍तों की ।

कम ही भरोसा है कि आएँ लौट के वो दिन,

होती नहीं है हैसियत बरजोर रिश्‍तों की ।

पढ़ लिख जहाँ की देखती सपने नई पीढ़ी,

है उस जहाँ में नींव ही कमजोर रिश्‍तों की ।

भूले बिसारे याद आयें वे निभें ‘’आकुल’’,

मौजूदगी मजबूत हो चितचोर रिश्‍तों की ।

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