गीतिका
छंद- माधुरी
मापनी- 2212 2212 2212 22
पदांत- रिश्तों की
समांत- ओर
संस्कार ही तो हैं सँभाले डोर रिश्तों की ।
सबको बतायें अहमियत पुरजोर रिश्तों की ।फुरसत नहीं है जब किसी को दर्द में तो फिर ।
किस काम की हैं बंदिशें तब घोर रिश्तों की ।कम ही भरोसा है कि आएँ लौट के वो दिन,
होती नहीं है हैसियत बरजोर रिश्तों की ।पढ़ लिख जहाँ की देखती सपने नई पीढ़ी,
है उस जहाँ में नींव ही कमजोर रिश्तों की ।भूले बिसारे याद आयें वे निभें ‘’आकुल’’,
मौजूदगी मजबूत हो चितचोर रिश्तों की ।
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