Bangluru Blast |
हैराँ है, पशेमाँ है वतन, इनकी बेशर्मियों से।।
कैसा ज़ुनून है यह, कैसी हवा चली है।
ख़ौफ़ में घर-घर है, गुस्सा गली-गली है।
तूफाँ कहीं न बन जाये यह, हवा गर्मियों से।।
क्यूँ बनने लगा है इंसाँ, जानवरों से बदतर।
क्यूँ बढ़ने लगी है वहशत, दायरों से हटकर।
कानून सख़्त निपटे इन, दरिंदों कुकर्मियों से।।
नासूर, कर्कटाबुर्द हैं, कंटक हैं ये वतन के।
नाग हैं आस्तीनों के, दुश्मन हैं ये अमन के।
ख़तरे में है वतन ऐसे, पल रहे अधर्मियों से।।
इन हादसों से कैसा, माहौल बन रहा है।
क़हर होगा नाज़िर जो, पेश आए नर्मियों से।।
संस्कारों के माने खत्म, होते जा रहे हैं।
सियासी पैमाने दम, खोते जा रहे हैं।
विश्वास उठने लगा है अब, पुलिसकर्मियों से।।
शांति छिन रही है बस, आस भर रही है।
कैसी योग-साधना जब, साँस भर रही है।
तिलांजलि को आतुर, अस्तित्व षडूर्मियों से।।
षडूर्मि- अस्तित्व (प्राण और मन) की छ: तरंगें- भूख, प्यास, शोक, मोह, जरा और मृत्यु।
बुभुक्षा च पिपासा च प्राणस्य मनस: स्मृतौ:।
शोक मोहौ शरीरस्य जरामृत्यु षडूर्मय:।।
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