जननी जन्मभूमि भारत माँ, तू है कृपानिधान।
भूमि जहाँ है सिद्ध, ढाई अक्षर का प्रेम विधान।
शत-शत बार प्रणाम करूँ, रखूँ सदा यह ध्यान।।
प्रातस्स्मरणीय मात-पिता-गुरु-जन्मभूमि पर
मान।
सदा अक्षुण्ण रहे माँ तेरी, आन, बान और शान।।
शिखर सुशोभित चंद्रचूड़ सा, हिमगिरि भाल सुहाए।
नदियों के पावन जल से, हर खेत यहाँ लहराए।
इतिहास तिरंगे का हरदम, तेरी विरुदावली गाए।
रामायण, महाभारत जैसे, ग्रंथ जहाँ विद्यमान्।
हर युग में अवतारों ने, आततायी संहारे।
सत्य, अहिंसा और धर्म के, पाठ पढ़ाए न्यारे।
यह वह देश जहाँ नारी ने, शक्तिरूप हैं धारे।
गंगा जहाँ अभ्यंग कराए, जलनिधि पाँव पखारे।
तेरे लिए असुर, सुर, ॠषि मुनि, सब हैं एक समान।
गीता का संदेश गूँजता, ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’।
’वसुधैवकुटुम्बकम्’ के दर्शन, केवल भारत में दिखते।
आज भी गोमाता पुजती है, धर्म सभी हैं पुजते।
कण कण में ईश्वर है, पलते भावभक्ति के रिश्ते।
भूमि जहाँ है सिद्ध, ढाई अक्षर का प्रेम विधान।
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