11 अप्रैल 2013

सरस्‍वती वन्‍दना

कुण्‍डलिया
(1)

वीणापाणि नमन करूँ, धरूँ ध्‍यान निस्‍स्‍वार्थ।
यथाशक्ति सेवा करूँ, करूँ खूब परमार्थ। 
करूँ खूब परमार्थ, बने जड़बुद्धि चेतन।
सबको दे सद्बुद्धि, न कोई हो निश्चेतन।
ऐसा वर दो मातु, रहें सब सुख से प्राणि।
शब्‍द ज्ञान विस्‍तार, हो सबका वीणापाणि।।

(2)
वर दो ऐसा शारदे, नमन करूँ ले आस।
हटे तिमिर अज्ञान का, और बढ़े विश्‍वास।
और बढ़े विश्‍वास, ज्ञान की गंगा जमुना।
बहे हवा साहित्‍य, सुधारस की किं बहुना।
कह 'आकुल' कविराय, मधुमयी रसना कर दो।
वैर द्वेश हों खत्‍म, शारदे ऐसा वर दो।। 


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