गीतिका
पदांत- है
समांत- आन
ज्ञान में सम्मान्य है, वागीश्वरी वरदान है.
विद्वान् है, गुणवान् है, महान् है कला में वह,
प्राणिजगत् में मनुष्य ही इस धरा की शान है.
भविष्य की उड़ान है, है वर्तमान बहु उर्जित,
पंचतत्व निर्मित नियति निर्दिष्ट वह विज्ञान है.
वाक्-पटुता में दिया है धैर्य प्रकृति ने प्रबल,
जिह्वा में तो जैसे सरस्वती राजमान है.
खेल देखिए जगती में नियति का यहाँ ‘आकुल’
मनुष्य ही मनुष्य के उत्कर्ष में व्यवधान है.
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