गीतिका
छन्द–
पारिजात
मापनी- 2122
1212 22
पदांत- है
समांत- आना
कुछ न बोलो यही जमाना है.
बढ़ के’ आफ़त गले
लगाना है.
धैर्य इनसान आजकल भूला
भूल होगी उसे सिखाना है.
सब दिखावे के’ रह गये रिश्ते,
सोच कर ही उन्हें निभाना
है.
दूसरों के लिए जिए थोड़ा,
दर्द में मुँह नहीं छिपाना
है।
हर समय जीतना नहीं मुमकिन
हार का जश्न भी मनाना है.
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