11 सितंबर 2022

दिल वालों की है दिल्‍ली

 गीतिका

छंद विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222,
समान्त -आना,
पदान्त- तुम

कभी दिल्ली रुको तो बिन इसे देखे न जाना तुम।
पुरानी अब नहीं यह आज देखो फिर बताना तुम ।1।

यहाँ चारों तरफ हैं वन हरित उपवन हजारों में,
प्रदूषण मुक्त दिल्ली हो कहीं पौधा लगाना तुम।2।

यहाँ उपलब्ध हैं उत्कृष्ट पथ, बस, रेल सेवायें,
उबर, ओला व ई-रिक्शे कहीं भी हो बुलाना तुम।3।

यहाँ कर्तव्य पथघूमे बिना जाना नहीं राही,
स्वत: ही गर्व होगा दिल में दिल्ली को बसाना तुम।4।

लगी कैसी यहाँ की हर जगह हर पथ यहाँ तुमको,
न ऐसा हो बिना इससे मिले घर लौट आना तुम।5।

किसी की बात मे आए बिना घूमो फिरो दिल्ली,
अगर कोई कमी हे तो सुझावों को सुझाना तुम।6।

हृदय पर हाथ रख आकुलकि दिल वालों की है दिल्ली,
कभी देखो अतिथि सत्कार बस इसको सुहाना तुम ।7।

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