गीतिका
छंद विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222,
समान्त -आना,
पदान्त- तुम
♡
कभी दिल्ली रुको तो बिन इसे देखे न जाना तुम।
पुरानी अब नहीं यह आज देखो फिर बताना तुम ।1।
मापनी- 1222 1222 1222 1222,
समान्त -आना,
पदान्त- तुम
♡
कभी दिल्ली रुको तो बिन इसे देखे न जाना तुम।
पुरानी अब नहीं यह आज देखो फिर बताना तुम ।1।
यहाँ चारों तरफ हैं वन हरित उपवन हजारों में,
प्रदूषण मुक्त दिल्ली हो कहीं पौधा लगाना तुम।2।
प्रदूषण मुक्त दिल्ली हो कहीं पौधा लगाना तुम।2।
यहाँ उपलब्ध हैं उत्कृष्ट पथ, बस, रेल सेवायें,
उबर, ओला व ई-रिक्शे कहीं भी हो बुलाना तुम।3।
उबर, ओला व ई-रिक्शे कहीं भी हो बुलाना तुम।3।
यहाँ ‘कर्तव्य पथ’ घूमे बिना जाना नहीं राही,
स्वत: ही गर्व होगा दिल में दिल्ली को बसाना तुम।4।
स्वत: ही गर्व होगा दिल में दिल्ली को बसाना तुम।4।
किसी की बात मे आए बिना घूमो फिरो दिल्ली,
अगर कोई कमी हे तो सुझावों को सुझाना तुम।6।
हृदय पर हाथ रख ‘आकुल’ कि दिल वालों की है दिल्ली,
कभी देखो अतिथि सत्कार बस इसको सुहाना तुम ।7।
कभी देखो अतिथि सत्कार बस इसको सुहाना तुम ।7।
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