2 सितंबर 2022

आपा धापी खुद कर सके जो सदा ही फला है

छंद- मंदाक्रांता (वार्णिक) (इंद्रधनुष...) 
विधान- (मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु) 4,6,7 पर यति। 
मापनी- 222  211 111 221 221 22 
पदांत- है 
समांत- अला

आपा-धापी, खुद कर सके, जो सदा ही फला है ।। 
खामोशी से, रह बस कहीं, भी न कोई छला है ।।

आते-जाते, सुख-दुख सभी, के घरों में रहेंगे, 
आगे-पीछे, कब तक किसी, के भरोसे चला है ।।

जाते-जाते, मुड़ कर नहीं, देखना तू कभी भी, 
दोबारा ना, अवसर मिला, है कहीं जो टला है ।।

सच्‍चा ही है, हर दम नहीं, दर्द देता किसी को, 
दावा झूठा, कब तक करे, वो कभी तो ढला है ।।

थोड़ी ही ‘आकुल’ पर कमी है, सभी में जहाँ में, 
सोना भी तो, तप कर बना, है खरा जो गला है ।।

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें