छंद-
मंदाक्रांता (वार्णिक) (इंद्रधनुष...)
विधान-
(मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु) 4,6,7 पर यति।
मापनी-
222 211 111 221 221 22
पदांत-
है
समांत-
अला
आपा-धापी,
खुद कर सके, जो सदा ही फला है ।।
खामोशी
से, रह बस कहीं, भी न कोई छला है ।।
आते-जाते,
सुख-दुख सभी, के घरों में रहेंगे,
आगे-पीछे,
कब तक किसी, के भरोसे चला है ।।
जाते-जाते,
मुड़ कर नहीं, देखना तू कभी भी,
दोबारा
ना, अवसर मिला, है कहीं जो टला है ।।
सच्चा
ही है, हर दम नहीं, दर्द देता किसी को,
दावा
झूठा, कब तक करे, वो कभी तो ढला है ।।
थोड़ी
ही ‘आकुल’ पर कमी है, सभी में जहाँ में,
सोना भी तो, तप कर बना, है खरा
जो गला है ।।
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