22 अप्रैल 2011

अहो ! मूषक नन्दिनी

अहो ! मूषक नन्दिनी, क्‍यूँ मेरे नव प्रासाद में।
कर अतिक्रमण रहती हो तुम, हम रात दिन अवसाद में।
अहो ! मूषक नन्दिनी, हम रात दिन अवसाद में।

चंचला, कुटनी, चपल, निर्लज्ज तुम, तुम ढीठ हो।
स्वच्छन्द तुम हो घूमती, जब भी हमारी पीठ हो।
वस्त्र क्या‍, क्या अन्न, तीक्ष्णदन्ता, सब नष्ट करती।
कुटर-कुटर ताल से, भयाक्रान्ता‍, नहीं नींद भरती।
कहीं अनहोनी कोई भी, कभी भी जो, हो जाये तो।
जिसने न चींटी मारी हो, उससे वध हो जाये तो।
जाओ यहाँ से कलमुँही, जो भी मिला, खा कर उसे।
और काला मुँह करो, जो भी मिले ले कर उसे।
निर्विघ्न रहना है हमें, नहिं, पड़ना किसी विवाद में।
अहो ! मूषक नन्दिनी, हम रात दिन अवसाद में।

अब तो हद, रसोई भी, करने लगी हो, तुम अशुद्ध।
क्‍या इरादा है, क्या तुम, तैयार हो करने को युद्ध।
श्यामली, मैली-कुचैली, कूबड़ी सी पीठ वाली।
जब भी देखते हैं, छूटते ही, निकलती है गाली।
तुम्‍हरी बेशर्मी के चलते, घर में ना भण्डार है।
रोज चून लाते हैं, ना अन्न की दरकार है।
काँच की बोतल में, भरते हैं मसाले, घी और तेल।
अभी भी रस्‍ता है, समझौता, कर लो हमसे मेल।
ठीक है तुमको भी, भरण-पोषण को, यह जरूरी है।
शहर में भण्‍डारगृह हैं, ये घर ही क्‍या जरूरी है।
निकल्‍लो तुम तो, क्‍या मिलेगा, झगड़ा-फ़साद में।
अहो ! मूषक नन्दिनी, हम रात दिन अवसाद में।











मैं तो चलो छोड़ता, विचरण करो आराम से।
हम दो ही प्राणी हैं, शरणागत हो तुम, यह मान के।
रहना मुझे पत्‍नी के संग, जिसने किया अनशन शुरु।
हो जाओ क़ैद पिंजरे में या धोबी पछाड़ हो शुरू।
चुपचाप खिसक लो या मैं, प्रबन्‍ध अब विष का करूँ।
नहीं तो मान लो यह युद्ध, होगा अब, मारूँ मरूँ।
तैयार मेरी पत्‍नी, ले झाडू़, हे! पूसी व्‍यंजनी।
काली दुर्गा का रूप धर, उतरी है मूसी मर्दिनी।
मुझे मिली चेतावनी, ब्रह्मास्त्र है अब हाथ में।
अहो ! मूषक नंदिनी, हम रात दिन अवसाद में।

सभी हटाये मार्ग बंध, कर बंद झरोखे, द्वार सब।
अब कोई भी अवसर नहीं, करना है बस संहार अब।
तभी हुई हलचल दिखा कोटर और उसके द्वार से।
च्‍याऊँ-म्‍याऊँ निनाद संग, निकले सभी मुरदार से।
दौड़ि मूषक नंदिनी, पर बाल वृन्‍द लाचार थे।
किया कोटर बंद, घमासान के नहीं आसार थे।
दौड़ा-दौड़ा थका दिया, न बाल बाँका भी किया।
किया समर्पण अंतत:, क़ैद ज़िन्‍दा ही किया।
तड़ी पार कर, किया फि‍र, जश्न इसी आह्लाद में।
अहो ! मूषक नंदिनी, हम कब से थे अवसाद में।

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