21 दिसंबर 2013

माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी


माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी
कहते नहीं सुना दुखियारी।

बस कुछ न कुछ करते धरते
कदमों को न देखा थकते
पौ फटने से साँझ ढले तक
बस देखा है उम्र बदलते

हरदम देखी काम खुमारी
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

झाड़ू चौका चूल्‍हा चक्‍की
समय साधने में वह पक्‍की
नहीं पड़ी कोई क्‍या कहता
सोच लिया तो करना नक्‍की

पीछे रहती घड़ी बिचारी।
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

कपड़े धोना सीना पोना
दूध जमाना छाछ बिलोना
साफ सफाई की बीमारी
धोना घर का कोना कोना

समय पूर्व करती तैयारी।
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

सही समय पर हमें उठाना
नहीं उठें तो आँख दिखाना
घुटी पिलाती संस्‍कार की
पर्व त्‍योहारों को समझाना

घर भर है उसका बलिहारी
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

पास पड़ौस समाज सभी का
ध्‍यान रहे हर काम सभी का
हर खुशियों गम में शरीक हो
हाथ बँटाती सदा सभी का

बस ऐसे ही उम्र गुजारी।
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

बहिना की जब हुई सगाई।
खुशियों से फूली न समाई।
दौड़-दौड़ दुगुनी हिम्‍मत से
उसकी पल में करी बिदाई।

फि‍र टूटी पर उफ न पुकारी।
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

पापा के कंधे से मिल कर
हाथ बँटाया हँस खिल-खिल कर
हर मुश्किल आसान हो गई
बड़े हो गये हम कब पल कर

समझ गये माँ की खुददारी
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।

आई बहू न कुछ भी बदला
कहती धी ने चोला बदला
अपने घर हैं कौन कुटुम्‍बी
ईन मीन चारों का कटला

कहती अब गूँजे किलकारी।
माँ ने कभी न हिम्‍मत हारी।।

1 टिप्पणी:

  1. -डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'14 जनवरी 2014 को 10:58 am बजे

    मां पर अद्भुत रचना. बधाई.
    -डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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