पदांत- हैं
समांत- आते
बच्चों
को वर्षा क्या सारे,
मौसम भाते हैं.
इसलिए कि उनको न कभी सुख, दुख तरसाते है.
कहाँ
जानते हैं वे होता,
है क्या सच व झूठ,
क्या होता है डर कब कैसे, इसे सिखाते हैं.
पहली
बारिश में कितने ही,
होते कौतूहल,
नाव चले कैसे, कागज की, नाव
बहाते हैं
तन
को फुला-फुला पंछी क्यों,
बैठे शाखों पर,
कहाँ जानते पिक चुप क्यों, दादुर टर्राते हैं.
बचपन
से बँध जाते घर से,
कहाँ जान पाते,
पर आते ही पंछी घर से, क्यों उड़ जाते हैं.
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